संगीत की दुनिया में ऐसा कम ही होता है जब कोई कलाकार अपनी कला को इतना ऊँचा उठा दे कि वह सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में एक मिसाल बन जाए। उस्ताद ज़ाकिर हुसैन, जिन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत का तबला सम्राट कहा जाता है, का 73 वर्ष की आयु में 15 दिसंबर 2024 को निधन हो गया। उनका निधन न केवल संगीत प्रेमियों के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक बड़ी क्षति है।
ज़ाकिर हुसैन: एक संगीतकार जो सिर्फ भारत का नहीं, दुनिया का था
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन का जन्म संगीत की विरासत में हुआ था। वे प्रसिद्ध तबला वादक उस्ताद अल्ला रक्खा के बेटे थे और उन्होंने बचपन से ही संगीत की गहराई में उतरना शुरू कर दिया था। उनके तबले की थाप में न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत की आत्मा थी, बल्कि वह एक ऐसा मंच भी बन गया था जहाँ विभिन्न संगीत संस्कृतियाँ मिलती थीं।
उनकी संगीत यात्रा छह दशकों तक फैली रही, जिसमें उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। ज़ाकिर हुसैन ने न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनकी प्रतिभा का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें पाँच बार ग्रैमी अवार्ड से सम्मानित किया गया।
अंतरराष्ट्रीय पहचान और योगदान
1973 में उनका प्रोजेक्ट ‘शक्ति’ अंग्रेज़ गिटारिस्ट जॉन मैकलॉफलिन, वायलिन वादक एल. शंकर और पर्कशनिस्ट टी.एच. विक्कू विनायकम के साथ हुआ। यह प्रोजेक्ट भारतीय शास्त्रीय संगीत और जैज़ का एक अनोखा मेल था। इस प्रोजेक्ट ने संगीत की दुनिया में एक नई धारा को जन्म दिया और ज़ाकिर हुसैन को एक वैश्विक कलाकार के रूप में स्थापित किया।
ज़ाकिर हुसैन ने न केवल संगीत में योगदान दिया, बल्कि भारतीय संगीत को वैश्विक पहचान दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाया।
पुरस्कार और सम्मान
ज़ाकिर हुसैन को भारत सरकार ने कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा। उन्हें 1988 में पद्म श्री, 2002 में पद्म भूषण और 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। ये सम्मान उनके योगदान और उनकी कला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि
उनके निधन की खबर फैलते ही सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलियों का तांता लग गया। केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उनकी तबला वादन की एक क्लिप शेयर करते हुए लिखा, “ज़ाकिर हुसैन जी का तबला सीमाओं और पीढ़ियों को पार करते हुए एक वैश्विक भाषा बोलता था। उनकी धुनें और थापें हमारे दिलों में हमेशा गूँजती रहेंगी।”
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भी गहरी संवेदनाएँ व्यक्त कीं। उन्होंने लिखा, “उस्ताद ज़ाकिर हुसैन साहब के निधन से हमारी सांस्कृतिक दुनिया और गरीब हो गई है। उन्होंने तबले को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नई पहचान दी। उनका जाना एक ऐसा खालीपन छोड़ गया है जिसे भरना मुश्किल है।”
बीमारी और अंतिम दिन
ज़ाकिर हुसैन पिछले दो हफ्तों से अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को अस्पताल में भर्ती थे। उनकी मैनेजर निर्मला बचानी ने बताया कि वे हृदय संबंधी समस्याओं और उच्च रक्तचाप से जूझ रहे थे। उनके प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर उनके स्वस्थ होने की कामना की थी। लेकिन रविवार को उनका इलाज के दौरान निधन हो गया।
एक विरासत जो हमेशा जीवित रहेगी
ज़ाकिर हुसैन के निधन से संगीत की दुनिया में एक युग का अंत हो गया है। लेकिन उनकी संगीत धुनें और उनकी थापें हमेशा जीवित रहेंगी। उन्होंने जो विरासत छोड़ी है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।
उस्ताद ज़ाकिर हुसैन केवल एक तबला वादक नहीं थे; वे संगीत की आत्मा थे। उनके बिना संगीत जगत में एक गहरी खामोशी छा गई है। उनके परिवार, शिष्यों और करोड़ों प्रशंसकों के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है।
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