बॉलीवुड में फैमिली ड्रामा फिल्मों की खास जगह है। ‘स्वर्ग’ से लेकर ‘बागबान’ जैसी कहानियां दर्शकों के दिलों में खास जगह बना चुकी हैं। इसी जॉनर में डायरेक्टर अनिल शर्मा ने अपनी नई फिल्म ‘वनवास’ लेकर दर्शकों के सामने एक और इमोशनल सफ़र पेश किया है। नाना पाटेकर, उत्कर्ष शर्मा और सिमरत कौर जैसे सितारों के साथ यह फिल्म आधुनिक परिवारों की जटिलताओं और माता-पिता की अनदेखी की कहानी को दर्शाती है। क्या यह फिल्म दर्शकों के दिलों को छूने में कामयाब होती है या इमोशनल नुस्खों के साथ कहीं गुम हो जाती है? आइए जानते हैं।
Vanvaas Movie Review
‘वनवास’ की कहानी दर्शकों को एक संवेदनशील और भावुक सफर पर ले जाती है। यह कहानी है त्यागी (नाना पाटेकर) की, जो एडवांस डिमेंशिया से पीड़ित हैं और अपने तीन बेटों और भरे-पूरे परिवार के बावजूद अकेलेपन और उपेक्षा का शिकार हैं। फिल्म का प्लॉट उनके परिवार और त्यागी के बीच रिश्तों की खटास को बारीकी से दिखाता है।
त्यागी का अपने दिवंगत पत्नी के नाम पर बने घर को ट्रस्ट में बदलने का फैसला उनके लालची बेटों को रास नहीं आता। कहानी का टर्निंग पॉइंट तब आता है जब बेटे उन्हें बनारस में छोड़कर उनकी झूठी मौत की खबर फैला देते हैं।
बनारस की पृष्ठभूमि में त्यागी की मुलाकात बीरु (उत्कर्ष शर्मा) से होती है। एक चोर से नायक बने बीरु का त्यागी को उनके घर वापस पहुंचाने का मिशन कहानी को एक नई दिशा देता है। इस सफर में बीना (सिमरत कौर), राजपाल यादव और अश्विनी कालसेकर जैसे किरदार हास्य और संवेदना का सही संतुलन बनाते हैं।
Vanvaas Movie की कहानी
फिल्म ‘वनवास’ की कहानी पारिवारिक रिश्तों और आधुनिक समाज में माता-पिता की अनदेखी पर आधारित है। त्यागी (नाना पाटेकर) अपने तीन शादीशुदा बेटों और पोते-पोतियों वाले भरे-पूरे परिवार के बावजूद अकेलापन महसूस करते हैं। वह एडवांस डिमेंशिया से पीड़ित हैं, और अपनी दिवंगत पत्नी से बहुत प्यार करते हैं। इसी प्यार की वजह से वह पत्नी के नाम पर बनाए गए घर ‘विमला सदन’ को ट्रस्ट में बदलने का फैसला करते हैं, ताकि यह उनकी यादों को जिंदा रख सके और समाज सेवा में भी काम आए।
त्यागी का यह फैसला उनके बेटों को बिलकुल पसंद नहीं आता। वे पिता की संपत्ति को हड़पने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। आखिरकार, वे त्यागी को बनारस ले जाकर अकेला छोड़ देते हैं और दुनिया को यह यकीन दिला देते हैं कि त्यागी गंगा में डूबकर मर गए।
बनारस में त्यागी की मुलाकात बीरु वालिंटियर (उत्कर्ष शर्मा) से होती है। पहले तो बीरु, त्यागी की हालत का फायदा उठाने की कोशिश करता है, लेकिन जैसे ही उसे त्यागी की सच्चाई का पता चलता है, वह उनके घर वापस लौटने की ठान लेता है। इस मिशन में उसे अपनी प्रेमिका बीना (सिमरत कौर), दोस्त (राजपाल यादव) और बीना की मौसी (अश्विनी कालसेकर) का पूरा साथ मिलता है।
कहानी के अंत में बीरु त्यागी को उनके बेटों से मिलाने की कोशिश करता है। लेकिन, क्या उनके लालची बेटे अपने पिता को स्वीकार करेंगे? या त्यागी अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे? इन सभी सवालों का जवाब फिल्म के इमोशनल क्लाइमेक्स में मिलता है।
Vanvaas Movie: निर्देशन और सिनेमेटोग्राफी
अनिल शर्मा का निर्देशन इस बार इमोशनल टच पर अधिक केंद्रित है। उन्होंने कहानी को सरल और पारिवारिक बनाए रखने की कोशिश की है। कबीर लाल की सिनेमेटोग्राफी दर्शनीय है। बनारस के घाट, घरों की छतों और बर्फीले दृश्यों की भव्यता कहानी में चार चांद लगाती है। फिल्म के विजुअल्स से एक गहराई महसूस होती है, खासकर जब त्यागी के दर्द और बीरु की मासूमियत को उभारा गया है।
Vanvaas Movie: संगीत और संवाद
फिल्म के गाने कहानी को मजबूती देते हैं। ‘गीली माचिस’ जैसे गाने इमोशन्स को और गहराई देते हैं। हालांकि, कुछ गाने प्लॉट की गति को धीमा करते हैं। संवाद सरल और रोजमर्रा की भाषा में लिखे गए हैं, जो दर्शकों से सीधा जुड़ने में मदद करते हैं।
Vanvaas Movie: अभिनय
नाना पाटेकर का अभिनय फिल्म की जान है। उन्होंने एक उपेक्षित और गुस्सैल पिता की पीड़ा को बेहद संवेदनशीलता से जिया है। उत्कर्ष शर्मा ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया है। बीरु के रूप में उनकी मासूमियत और नाना पाटेकर के साथ उनकी केमिस्ट्री बेहद दिलचस्प है।
सिमरत कौर ने अपने किरदार में खूबसूरती और संवेदना का सही मिश्रण दिखाया है। वहीं, राजपाल यादव और अश्विनी कालसेकर ने अपने हास्य किरदारों से फिल्म को हल्के-फुल्के पल दिए हैं।
Vanvaas Movie: कमजोर कड़ियां
फिल्म का पहला भाग थोड़ा खिंचा हुआ लगता है। कहानी में कुछ सब-प्लॉट्स की वजह से मुख्य प्लॉट कमजोर हो जाता है। कुछ दृश्यों को बेहतर तरीके से एडिट किया जा सकता था।
Vanvaas Movie: अंतिम शब्द
‘वनवास’ एक संवेदनशील कहानी है, जो माता-पिता और बच्चों के बीच रिश्तों की जटिलता को छूती है। नाना पाटेकर का शानदार अभिनय और बनारस की पृष्ठभूमि फिल्म की खासियत हैं। हालांकि, कहानी की सुस्त रफ्तार और कुछ खामियां फिल्म की प्रभावशीलता को थोड़ा कम कर देती हैं।
यदि आप इमोशनल फैमिली ड्रामा के शौकीन हैं और नाना पाटेकर की अदाकारी को पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपको निराश नहीं करेगी।
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