“सिकंदर का मुकद्दर” हाल ही में रिलीज हुई एक दमदार हीस्ट थ्रिलर फिल्म है, जिसने दर्शकों को शुरुआत से अंत तक अपनी कहानी में बांधे रखा। फिल्म की कहानी ट्विस्ट और सस्पेंस से भरी हुई है, जिसमें हर मोड़ पर आपको एक नई परत देखने को मिलती है। लेकिन इसका क्लाइमेक्स ऐसा है, जिसने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया कि असली मास्टरमाइंड कौन है। डायरेक्टर नीरज पांडे की इस फिल्म में न केवल शानदार अभिनय है, बल्कि कहानी इतनी परफेक्ट है कि हर सीन के बाद आप यही सोचेंगे- “आगे क्या होगा?”
आज हम आपको “सिकंदर का मुकद्दर” के उस क्लाइमेक्स की डिटेल में चर्चा करेंगे, जिसमें फिल्म के सबसे बड़े राज खोले जाते हैं। क्या सिकंदर वाकई मासूम था? या उसने यह सब पहले से प्लान कर रखा था? और कामिनी की भूमिका इस कहानी में कितनी अहम थी? इन सभी सवालों का जवाब इस लेख में मिलेगा।
सिकंदर की कहानी और उसका मुकद्दर
फिल्म की शुरुआत होती है एक आलीशान ज्वेलरी एग्जीबिशन से, जहां दुनिया के पांच सबसे दुर्लभ रेड डायमंड्स को प्रदर्शित किया गया है। यह इवेंट जितना भव्य है, उतना ही खतरनाक मोड़ लेता है जब अचानक चोरी हो जाती है। पुलिस के सामने सबसे बड़ा सवाल है- हीरे किसने चुराए?
जांच के दौरान तीन संदिग्ध सामने आते हैं: सिकंदर, कामिनी और मंदे। पुलिस के विशेष जांच अधिकारी जसविंदर इस केस को लीड कर रहे हैं। जसविंदर अपने तेज दिमाग और इंस्टिंक्ट पर भरोसा करते हुए केस सुलझाने की कोशिश करता है। लेकिन, जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, दर्शकों के सामने सस्पेंस की परतें खुलती जाती हैं।
सिकंदर के मासूम दिखने वाले चेहरे के पीछे क्या कोई चालाक चोर छिपा है? कामिनी, जो पहली नजर में एक साधारण और परेशान महिला लगती है, क्या उसके पास ऐसा कोई राज है जो कहानी बदल सकता है? और मंदे, क्या वह केवल एक मामूली मोहरा है या असली खेल का मास्टरमाइंड?
क्या सच में सिकंदर मासूम था?
कहानी का सबसे बड़ा ट्विस्ट उस समय आता है जब जसविंदर, जो अपनी नौकरी खो चुका है, एक दिन सिकंदर को बुलाता है। जसविंदर अपनी गलती मानते हुए सिकंदर से माफी मांगता है और उसे अपने घर बुलाकर सारा सच बताने की बात करता है। सिकंदर को यह लगता है कि शायद अब उसे बेकसूर साबित कर दिया जाएगा।
लेकिन जैसे ही वह मुंबई छोड़कर प्रिया से मिलता है और वह पौधा वापस लाने की कोशिश करता है, जसविंदर उसे पकड़ लेता है। पौधे के अंदर से पांचों रेड डायमंड्स मिलते हैं। यह सीन दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर कर देता है कि क्या सिकंदर ने वाकई चोरी की थी।
सिकंदर का कहना है कि उसने डायमंड्स केवल पुलिस और अपराधियों से बचाने के लिए छिपाए थे। वह बताता है कि उसे एग्जीबिशन से पहले तुकाराम के घर एक फर्जी पास और हथियारों के बारे में पता चला था। यह सब जानने के बाद उसने यह सब प्लान किया।
लेकिन सवाल उठता है कि अगर सिकंदर मासूम था, तो उसने पुलिस को सीधे जानकारी क्यों नहीं दी?
कामिनी का छुपा हुआ खेल
कामिनी का किरदार फिल्म में बहुत खास है। वह दिखने में एक कमजोर और परेशान महिला लगती है, जिसे उसके पति ने छोड़ दिया है। उसके पास एक बच्चा और एक छोटी बहन है। लेकिन क्या वाकई वह इतनी मासूम है?
फिल्म के क्लाइमेक्स में यह साफ होता है कि कामिनी ने अपने नाखून में छोटा डायमंड छिपा रखा था। जसविंदर उसे पकड़ लेता है और ब्लैकमेल करता है कि वह सिकंदर पर नजर रखे। लेकिन क्या कामिनी ने यह डायमंड केवल खुद को बचाने के लिए चुराया था? या फिर यह एक बड़ी साजिश का हिस्सा था?
कई संकेत इस ओर इशारा करते हैं कि कामिनी असली मास्टरमाइंड है। उसने पहले डिवाइन ज्वेलरी में चार साल तक काम किया था। इस दौरान उसने चोरी की प्लानिंग की होगी। फिर कुछ साल का गैप लेकर वापस आई और मंदे के साथ मिलकर इसे अंजाम दिया।
क्या डायमंड्स असली थे?
फिल्म के अंत में जसविंदर यह सवाल उठाता है कि जो डायमंड्स बरामद हुए हैं, क्या वे असली हैं? कामिनी और मंदे की चालाकी को देखते हुए यह मुमकिन है कि उन्होंने पहले ही असली डायमंड्स बदल दिए हों।
अगर ऐसा है, तो सिकंदर के पास जो डायमंड्स थे, वे नकली थे। और कामिनी ने असली डायमंड्स पहले ही गायब कर दिए। यह प्लान इतना परफेक्ट था कि सिकंदर और जसविंदर दोनों को इसका अंदाजा तक नहीं हुआ।
जसविंदर और उसका खेल
जसविंदर का किरदार भी बेहद रोचक है। वह शुरुआत से ही केस को सुलझाने में लगा हुआ है। लेकिन उसकी अपनी कमजोरी है- वह अपने इंस्टिंक्ट पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करता है।
क्लाइमेक्स में जसविंदर सिकंदर को यह बताता है कि उसने यह सब एक चाल के तहत किया। उसने सिकंदर को यह सोचने पर मजबूर किया कि वह जीत गया है। लेकिन असल में, जसविंदर ने पहले से ही सब कुछ प्लान कर रखा था।
अगला पार्ट क्यों जरूरी है?
फिल्म का अंत कई सवालों के साथ होता है। यह साफ है कि कहानी यहीं खत्म नहीं हुई है। रेड डायमंड्स के असली चोर का पता लगाना अभी बाकी है। साथ ही, कामिनी और मंदे की कहानी को और विस्तार से दिखाना जरूरी है।
क्या जसविंदर अपनी खोई हुई इज्जत और नौकरी वापस पा सकेगा? और सिकंदर, जो खुद को मासूम साबित करने की कोशिश कर रहा है, क्या वह सच में बेकसूर है?
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निष्कर्ष
“सिकंदर का मुकद्दर” न केवल एक मनोरंजक हीस्ट थ्रिलर है, बल्कि यह दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है। फिल्म का क्लाइमेक्स ऐसा है, जो न केवल सस्पेंस को बढ़ाता है, बल्कि इसके अगले पार्ट के लिए भी उत्सुकता जगाता है।
कहानी में हर किरदार का अपना महत्व है। सिकंदर, कामिनी, मंदे और जसविंदर- सभी ने मिलकर इस फिल्म को बेहतरीन बनाया है। अब देखना यह होगा कि इसके अगले पार्ट में असली चोर कौन निकलता है और यह डायमंड्स किसके पास जाते हैं।
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